जब जब में पढना चाहू (व्यंग्य कविता)

जब जब में पढना चाहू
मोबाइल की रिंगटोन बजे (२)
जिंदबेरिये

जब जब में कॉलेज जाऊ


दोस्त सभी घुमने निकले… १ 

जब एग्झाम आये पास
टूर्नामेंट में जाऊ खेलने… २ 

जब पैरो पे ही नहीं हो खडे
तो शादी के लिए क्यू जी मचले… ३  

इसलिये कहेता हूं

पढोगे तो बन पाओगे कुछ
नहीं तो तेरे दिवाले निकले… ४ 

© राहुल

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