1960 से 1975 इस काल के मराठी और हिंदी ग्रामीण उपन्यासों में पाकिस्तान निर्मिती की घटनाएँ और परिणाम : एक अध्ययन

1960 से 1975 इस काल के मराठी और हिंदी ग्रामीण उपन्यासों में

पाकिस्तान निर्मिती की घटनाएँ और परिणाम : एक अध्ययन

प्रस्तावना:

            साहित्य को सामाजिक जीवन का दर्पण कहा जाता है। हर एक काल के महान साहित्यकृतीओ मे समसामयिक घटनाओं, विचारधारा, जनता के मन पर इसके प्रभाव को काल्पनिक पात्रों और घटनाओं के माध्यम से वास्तविक रूप में चित्रित किया जाता है। साहित्य में उस समय के समाज का दर्शन होता है। इसलिए साहित्य को सामाजिक जीवन के अध्ययन करने का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है।

            भारत के इतिहास में पाकिस्तान की निर्मिती एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है। इसका भारत के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन पर तात्कालिक और दूरगामी परिणाम हुआ हैं। 1945 के आसपास, पाकिस्तान बनाने का विचार गति पकड़ रहा था। अंग्रेजों ने इन विचारों को खाद देने का काम किया। मुस्लिम लीग मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी थी। इस पार्टी ने स्वतंत्र पाकिस्तान के निर्माण की पुरजोर वकालत करनी शुरू कर दी। इस मुद्दे पर मोहम्मद अली जिन्ना का नेतृत्व आगे

आया। ये विचार मुस्लिम बहुल गांवों और कस्बों में व्यापक रूप से प्रचारित किए गए थे। स्वतंत्र पाकिस्तान के निर्माण के पीछे के कारण, विचारधारा, इसके लिए चुना गया रास्ता, आम लोगों की प्रतिक्रिया और इस घटना के परिणाम इन सब का चित्रण 1960 से 1975 इस काल के उपन्यासों मे आया  हैं।

अनुसंधान कार्य का महत्व:

            प्रस्तुत शोध पत्र मे 1960 से लेकर 1975 इस काल के मराठी और हिंदी ग्रामीण उपन्यासों में चित्रित  स्वतंत्र पाकिस्तान के निर्माण के कारण, इसके पीछे की विचारधारा, इसके लिए चुना गया रास्ता, आम लोगों की प्रतिक्रिया और इस घटना के परिणाम आदि बातों का अध्ययन किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में तत्कालीन हिंदू और मुसलमान, उनके आपसी संबंध, उनका इन घटनाक्रमों की तरफ देखने का दृष्टिकोण, इस घटना का भारत के ग्रामीण क्षेत्रों पर, वहां के लोगों पर, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक जीवन इनके उपर पडा हुआ प्रभाव, उस समय की वास्तविकता आदि बातें इस शोध पत्र से सामने आती है।

उद्देश्य:

1) 1960 से 1975 इस काल के मराठी और हिंदी ग्रामीण उपन्यासों में चित्रित पाकिस्तान के निर्माण की घटनाए, इस घटना के पीछे के कारण आदि का अध्ययन करना।

2) इस काल के मराठी और हिंदी ग्रामीण उपन्यासो में आए हुए चित्रण से ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन पर इस घटना के प्रभावों का अध्ययन करना।

3) इस संबंध में, उस समय के ग्रामीण क्षेत्रों के आम लोगों की मानसिकता, इस घटना के प्रति उनका दृष्टिकोण, आदि बातों को खोजना।

4) 1960 से 1975 इस काल के मराठी और हिंदी ग्रामीण उपन्यासों में चित्रित इस घटना के संदर्भ में समानता और अंतर का अध्ययन करना।

परिकल्पना (Hypothesis) :

1) 1960 से 1975 इस काल के मराठी और हिंदी के ‘इंधन’, ‘आधा गांव’, ‘अलग-अलग वैतरणी’ इन ग्रामीण उपन्यासों मे पाकिस्तान के निर्माण की घटना, इस घटना के पीछे के कारण आदि बातों का विस्तृत वर्णन आया हुआ है।

2) भले ही पाकिस्तान के गठन के समय भारत में कई स्थानों पर दंगे हुए थे, लेकिन ग्रामीण इलाकों में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच शांति और सद्भाव बना हुआ था।

3) पाकिस्तान के गठन से ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन पर कई तात्कालिक और दूरगामी प्रभाव हुए हैं।

4) दोनों भाषाओं के ग्रामीण उपन्यासों में पाकिस्तान के निर्माण का यथार्थ चित्रण आया हुआ है, उसमें कुछ समानताएँ और कुछ अंतर हैं।

संशोधन कार्यप्रणाली Research Methodology:

‘1960 से 1975 इस काल के मराठी और हिंदी ग्रामीण उपन्यासों में पाकिस्तान निर्मिती की घटनाएँ और परिणाम : एक अध्ययन’ इस शोध पत्र के लिए वर्णनात्मक, विश्लेषणात्मक (Analytical) आदि अनुसंधान विधियों का उपयोग किया गया है। दो भाषाओं के उपन्यासों के अध्ययन होने के कारण तुलनात्मक समीक्षा पद्धति का उपयोग किया है। साथ ही Primary Data और जहाँ आवश्यक हो वहा पे Secondary Data का इस्तेमाल किया गया है।

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स्वतंत्र पाकिस्तान के निर्माण के पीछे के कारण, विचारधारा, इसके लिए चुना गया रास्ता, आम लोगों की प्रतिक्रिया और इस घटना के परिणाम इन सब का चित्रण 1960 से 1975 तक के उपन्यासों मे निम्नलिखित स्वरूप मे आया  हैं।

मराठी ग्रामीण उपन्यासों में चित्रण:

            1960 से 1975  के मराठी के ग्रामीण उपन्यासों में हमीद दलवाई का ‘इंधन’ यह (1968) बहुत यथार्थवादी उपन्यास है। इस उपन्यास में पाकिस्तान के निर्माण, इसके दौरान हुए दंगों, मोहम्मद अली जिन्ना, आदि घटनाओ का उल्लेख है। इस उपन्यास में कोंकण में एक मुस्लिमबहुल गाँव के जीवन को दर्शाया गया है। इस गाँव के मुसलमानों ने पाकिस्तान के निर्माण के लिए जिन्ना का समर्थन किया। वह मुस्लिम लीग के कार्यकर्ता थे। उन्होने वहां मपारी मस्जिद के पास दंगा भी किया था। नायक के पिता और अन्य मुस्लिम सोचते थे, “अगर हमें पाकिस्तान मिला तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। इधर मुसलमान और उधर हिंदू, कोई किसी का बाल तक नहीं छूएगा।” 1 लेकिन, आजादी के पंद्रह साल बाद भी भारत और भारत-पाकिस्तान में, हिंदू-मुस्लिम संबंधों में बहुत तनाव रहा। यह देखकर, नायक के पिता को लगता है कि, पाकिस्तान का निर्माण जिन्ना साहब द्वारा की गई एक बड़ी गलती है। एकदम स्वतंत्र पाकिस्तान की मांग के बजाय, उन्हें भारत के साथ कहीं न कहीं बंधके रखना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो इतनी बुरी स्थिति नही रहती। जिन्नासाहब इतने होशियार थे। लेकिन, उनसे यह गलती हो गई। हमने उनका समर्थन किया। लेकिन, हम अज्ञानी, अशिक्षित लोग थे। वह एक नेता थे। हमें सुधारना उनका काम था।

            इससे, भारत-पाक विभाजन के पंद्रह साल बाद, उपन्यास में मुसलमानों को लगता है कि पाकिस्तान का निर्माण जिन्ना द्वारा की गई एक बड़ी गलती है। जिस उद्देश्य के लिए पाकिस्तान की मांग की गई थी। इसे पूरा नहीं किया जा सका। हिंदू-मुस्लिम और भारत-पाक संबंध बाद के समय में भी तनावपूर्ण रहे। इस काल के अन्य मराठी उपन्यास इस संदर्भ को चित्रित नहीं करते हैं।

हिंदी ग्रामीण उपन्यास में चित्रण:

हिंदी में ‘आधा गाँव’ (1968) यह राही मासूम रज़ा द्वारा लिखा गया एक बेहतरीन उपन्यास है। इस उपन्यास में लेखक ने ग्रामीण क्षेत्रों में हिंदू-मुस्लिम संबंधों के साथ-साथ पाकिस्तान के निर्माण के विचार, प्रक्रिया, वास्तविक घटनाओं और उसके बाद का विस्तृत चित्रण किया हुआ है। यह निम्नलिखित मुद्दों पर आधारित है।

स्वतंत्र पाकिस्तान की मांग के कारण: 

‘आधा गाँव’ उपन्यास से ये पता चलता है कि, स्वतंत्र पाकिस्तान बनाने का विचार शहरों से गांवों तक आया था। पाक-निर्माण के प्रचारक गाँवों में आते थे और लोगों को पाकिस्तान के निर्माण की आवश्यकता और कारण बताते थे। वह कहते थे, “काँग्रेस हिंदुओं की पार्टी है ! चूँकि मुसलमान जमींदार ज्यादा हैं, इसलिए यह जमींदारी जरूर खतम करेगी। त देहातन में मुसलमान कै घर हैं? दाल में नमक की तरह त हैं।” (तसेच)  “हिंदोस्तानी मुसलमान की तकदीर में रोना लिखा है।” 2 यानी, उन्हें डर था कि मुसलमान बड़ी संख्या में जमींदार है इसलिए कांग्रेस जमींदारी को खत्म कर देगी। मुस्लिम जमींदारों की जमीनें छीन ली जाएंगी। गांवों में पहले से ही मुसलमानों की संख्या बहुत कम है। गरीबी आने से उनके अस्तित्व को खतरा होगा।

            अब्बास जैसे युवा सोचते थे, “एक मरतबा पाकिस्तान बन गया तो मुसलमान ऐश करेंगे… ऐश !” 3 शायद उनको ऐसा लग रहा होगा कि, उनको  भारत में दबाया जा रहा है और वे पाकिस्तान में स्वतंत्र और मुक्त  रूप से रह पाएंगे।

            कुछ स्वार्थी लोग अपने फायदे के लिए पाकिस्तान की मांग में मदद कर रहे थे। गंगौली के हादी मियां और सद्दन मियां उनमें से कुछ हैं। दोनों मुस्लिम लीग को पाकिस्तान के लिए गाँव के लोगों का वोट दिलवाने की कोशिश कर रहे थे। 1942 के आंदोलन में ब्रिटिश सरकार की मदद करने के लिए सरकार द्वारा डिप्टी कलेक्टर से कलेक्टर के पद पर हादी मियां को पदोन्नत किया गया था। इस समय, सद्दन मियाँ तहसीलदार के पद से कलेक्टर हो सकते हैं। संक्षेप में, ऐसा लगता है कि ब्रिटिश सरकार द्वारा मुसलमानों में से महत्वपूर्ण लोगों को ऐसा करने के लिए उकसाया गया था और ऐसे लोग अपने हितों के लिए स्वतंत्र पाकिस्तान के पक्ष में जनमत संघटित कर रहे थे, ऐसा दिखाई देता है।

            पाकसमर्थक लोग गंगौली के लोगों को बताते हैं, “पाकिस्तान न बना तो ये आठ करोड मुसलमान यहाँ अछूत बनाकर रखे जायँगे”, “हमारी मस्जिदों में गायें बाँधी जायँगी”, “जब हिंदू आपकी माँ-बहन को निकाल ले जायँ तो फर्याद न कीजियेगा”, “इसी नमाज के बचाव के लिए तो पाकिस्तान की जरूरत है”, “यह तो आप लोगों को मालूम ही होगा कि आजकल पूरे मूल्क में मुसलमानों की जिंदगी और मौत की लडाई छिडी हुई है।…. हम ऐसे मुल्क में रहतें है जिसमें हमारी हैसियत दाल में नमक से ज्यादा नहीं है। एक बार अंग्रेजों का साया हटा तो ये हिंदू हमें खा जायेंगे। इसलिए हिंदुस्तानी मुसलमानों को एक ऐसी जगह की जरूरत है जहाँ वह इज्जत से जी सकें”, “और सबसे बडी बात तो यह है कि दुनिया के नक्शे पर एक और इसलामी हुकूमत का रंग चढ जायगा। और यह भी नामुमकिन नहीं कि दिल्ली के लाल किले पर एक बार फिर सब्ज इसलामी परचम लहराता नजर आये.” 4

            संक्षेप में, पाकिस्तानी समर्थकों को ऐसा लग रहा था कि, उनके साथ इस देश में सम्मान के साथ व्यवहार नहीं किया जाएगा, उनका अस्तित्व खतरे में होगा, और वे एक और मुस्लिम राष्ट्र और उसके बाद एक बार फिर भारत पर शासन करने का सपना देख रहे थे। क्योंकि उन्होने सात सौ वर्षों तक भारत पर शासन किया था। इसलिए उनका पाकिस्तान निर्मिती के लिए माहौल तैयार करना और जनमत संघटित करना शुरू था, ऐसा दिखाई देता है।

आम लोगों की प्रतिक्रिया:

            स्वतंत्र पाकिस्तान के मुद्दे पर माहौल बहुत गर्म था। लेकिन, ग्रामीण इलाकों में आम लोग कुछ हद तक इससे दूर रहने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें यह विचार पसंद नहीं थे। गाँव के मुसलमानों ने सोचा कि अंग्रेज कभी भारत नहीं छोड़ेंगे। इसलिए, कांग्रेस के सत्ता में आने और हमारे अस्तित्व को खतरे में डालने का कोई सवाल ही नहीं है।

            कुछ सामान्य मुसलमानों को तो पाकिस्तान क्या है? मुल्क क्या है? यह भी पता नहीं था। गंगौली के बहुत से मुसलमानों को भारत-पाक में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वह गंगौली में ही रहना चाहते थे। फारूक, एक उच्च शिक्षित युवक, गंगौली के लोगों को शहर में होने वाली घटनाओं से परिचित कराता था। उसके बोलने से पता चलता है कि, राजा महमूदाबाद, चौधरी खलीकुज्जमाँ, गजनफर अली, नवाब इस्माइल, नवाब यूसुफ और सर सुल्तान भी इस आंदोलन में सबसे आगे थे। फुन्नन मियां फारूक नाम के एक युवक से पूछते हैं कि, क्या  गंगौली गांव पाकिस्तान में जाएगा या भारत में रहेगा? इसपे वह जवाब देता है कि, वह भारत में ही रहेगा। तब फुन्नन मियां उनसे कहते हैं कि अगर गंगौली भारत में रहने वाला हैं, तो पाकिस्तान बनने या न बनने से हमारा संबंध क्या हैं? “ऐ भाई, बाप-दादा की कबुर हियाँ है, चौक इमाम बाडा हियाँ है, खेत-बाडी हियाँ है। हम कौनो बुरबक (मूर्ख) हैं कि तोरे पाकिस्तान जिंदाबाद में फँस जाय !”6 जब अंग्रेज चले जाएंगे, तो यहां हिंदुओं का राज्य होगा। ऐसा उसके कहेने पर, फुन्नन मिया ठाकुर कुँवरपाल, झिंगुरियाँ, परशुराम चमार का उदाहरण देते हैं और हिंदुओं के साथ अच्छे संबंधों का वर्णन करते हैं। उन्हें लगता है कि पाकिस्तान उनके पेट भरने का खेल है और कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए इसे लेकर आए हैं। इससे आम मुसलमानों को गंगौली, वहाँ के लोगों, उनके धार्मिक स्थलों, उनकी कृषि से प्रेम था। इसलिए उन्हें पाकिस्तान बनाने का विचार पसंद नहीं आया।

            गंगौली गाँव के तन्नू ने दूसरे विश्व युद्ध में लड़ाई लड़ी थी। वह एक सैनिक के तौर पर उसमे शामिल था। पाकिस्तान के प्रस्तावक, समर्थक आम मुसलमानों में हिंदुओं के बारे में भय और संदेह पैदा करने की कोशिश कर रहे थे। तन्नु सोचता है, “नफरत और खौफ की बुनियाद पर बननेवाली कोई चीज मुबारक नही हो सकती”, “कांग्रेस जमींदारी को तोडने की कोशिश जरूर करेगी क्योंकि ज्यादा जमींदार मुसलमान ही हैं। …. अगर ऐसा हुआ तो पाकिस्तान की इसलामी फौज दिल्ली पर हमला कर देगी !”, ऐसा बोलनेवाले को वह कहेता है कि, आप युद्ध की बाते कर सकते हो क्योंकि आपने अभी तक युद्ध नहीं देखा है। आप पाकिस्तान जरूर बनाओ “मगर कभी-कभी खैरियत का खत लिखते रहियेगा वहाँ से।”7 इससे पता चलता है कि, आम मुसलमान शांति और आपसी विश्वास का माहौल चाहते थे।

            पाकिस्तान के निर्माण के कारण हुए दंगों के मामले में, ऐसा लगता है कि आम आदमी हिंसा, दुश्मनी, अविश्वास, रक्तपात, विटंबना नहीं चाहता था। दंगों की खबर गाँवों में फैल गई। उस समय, कई स्वामी और अन्य धर्मांध लोगों ने हिंदुओं को भड़काने की कोशिश की। लेकिन, गांव मे रहनेवाले हिंदू यह नहीं समझ पाए कि, “अगर गुनाह कलकत्ता के मुसलमानों ने किया है तो बारिखपुर के बफाती, अलावलपुर के घुरऊ, हुँडरही के घसीटा को, यानी अपने मुसलमानों को सजा क्यों दी जाय? जिन मुसलमान बच्चियों ने छुटपन में उनकी गोद में पेशाब किया है, उनके साथ जिना (लैंगिक अत्याचार, बलात्कार) कैसे और क्यों की जाय?….. जिन मुसलमानों के साथ वह सदियों से रहते चले आ रहे है, उनके मकानों में आग क्यों और कैसे लगा दी जाय? उन मुल्लाजी को कोई कैसे मारे जो नमाज पढकर मस्जिद से निकलते हैं तो हिंदू-मुसलमान सभी बच्चों को फूँकते हैं?…. जमीन के मामलें में एकाध कत्ल-खून हो जाय तो कोई बात नहीं। लेकिन यूँ ही, सिर्फ इस जुर्म पर किसी को कत्ल कर देना या किसी का घर फूँक देना कि कोई मुसलमान है, उनकी समझ में नही आ रहा था।”8 इससे पता चलता है कि, ग्रामीण इलाकों में हिंदू और मुसलमानों के बीच घनिष्ठ संबंध थे। और वे कई पीढ़ियों के सहवास से बने थे, इसलिए वे दंगों के खिलाफ थे, यह उनकी बुद्धि के अनुकूल नहीं था।

हिंसक मोड़:

            शहर के मुसलमानो को किसी भी परिस्थिति मे पाकिस्तान एक अलग राष्ट्र चाहिये था। वह उसके लिए किसी भी स्तर पर जाने के लिए तैयार थे। कट्टर हिंदुत्ववादी उनके खिलाफ आक्रामक रूप दिखा के उनके मन में असुरक्षा और भय पैदा कर रहे थे। ऐसा करके वे जैसे उनकी माँगों को बढावा दे रहे हों। 1945 के बाद, भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दंगे भड़क उठे। दंगों की खबर गंगौली जैसे गाँवों में फैल गई। ग्रामीण क्षेत्रों में इन दोनों समुदायों के लोगों के बीच सामंजस्य और सहिष्णुता के संबंध थे। हालाँकि, जैसे-जैसे पाकिस्तान कि मांग धार्मिक रूप धारण करने लगी, वैसे वैसे कुछ ग्रामीण इलाकों में दंगे शुरू होने लगे। फिर भी वह बहुत कम थे। गंगौली में दंगे नहीं हुए।

            कलकत्ता में हुए दंगों की खबर गंगौली के मौलवी बेदार तक पहुँची। वह हकीम साहब से कहते हैं, “सुन रहे कि ई हरमजादे हिंदू मुसलमान के घरों में घुस-घुस के कतल कर रहे।” उस पर हकीम साहब जवाब देते हैं, “बाकी मुसलमानों कउनो हललजादे ना हैं।” 9 दोनों के बीच के बातचीत से, दंगे शुरू होना, गांव के लोगों को भी स्वाभाविक रूप से क्रोध आने लगा था और वे यह भी जानते थे कि हमारे लोग कैसे हैं, इन बातों का पता चलता है।

            हिंदू मे से कुछ लोग भी माहौल को गर्म करते हुए नजर आते हैं। गंगौली में मातादीन पंडित दंगों के दौरान हिंदू रैलियां करके लोगों को दंगों के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। सलीमपुर में आयोजित सभा में, फुन्नन मियां के विश्वसनीय सहयोगी झिकुरिया भी उपस्थित थे। फुन्नन मियां को उनसे जानकारी मिली। उस सभा में, मातादीन ने गंगौली, अलावलपुर, हुंडरही और सलिमपुर के गांवों पर हमला करके वहां के मुसलमानों को मार डालने का फैसला किया। उन्होंने मुस्लिमों के घरों मे किसी काल मे चमारिन या और हिंदू धर्मके किसी भी जाती की औरते रखेल बनके रही होगी, उनके घर से मुस्लिम लड़कियों को निकाल लाने के लिए भी कहा। उन्होंने सभा में हिंदुओं को लाहौर और कलकत्ता में एक एक हिंदू महिला के साथ दस-दस मुसलमानो ने बलात्कार करने की सुनी हुई घटनाओं के बारे में बताकर उन्हें भड़काने की कोशिश की। जब सभा मे शामिल हिंदू इन बातों को मानने से इनकार करने लगे तो वह वे गाय की कसम खाकर उन्हें बताते हैं कि उपरोक्त बातें सच हैं। एक स्वामी भगवान कृष्ण का नाम लेते हैं और लोगों को बताते हैं कि, आज भगवान कृष्ण भारत में हर हिंदू को आवाज़ दे रहे हैं और उनसे कह रहे हैं कि, उठो और मुसलमानों को गंगा और यमुना के पवित्र तट से भगाओ। उन्होंने लोगों से आवाहन किया कि, धर्म संकट मे है, इसलिए गंगाजल लेकर प्रतिज्ञा करो कि, भारत की पवित्र भूमि को मुसलमानों के खून से धोना है। इससे हिंदुओं के बीच के कट्टरपंथी पाकिस्तान के निर्माण की घटना का औचित्य साधकर मुसलमानों से बदला लेने के लिए जनमत को उकसा रहे थे। वह इसके लिए धार्मिक आवाहन कर रहे थे।

            इसका परिणाम यह हुआ कि, इस सभा में शामिल हिंदू बारिखपुर के मुसलमानों के घरों को जलाने और उन्हें मारने के लिए जाते हैं। हालाकि, वहा के ठाकुर जयपाल सिंह इस भीड़ को भगा देते है और वहां के  मुसलमानों की रक्षा करते है। यह घटना हिंदू और मुसलमानों के बीच के अच्छे संबंधों को भी दर्शाती है।

पाकिस्तान के निर्माण के परिणाम:

            ‘आधा गाँव’ इस उपन्यास में पाकिस्तान निर्माण के बाद हुए विभिन्न परिणामों को दर्शाया गया है। जब पाकिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र बना, तो भारत और पाकिस्तान के सभी महत्वपूर्ण शहरों में भारी दंगे भड़क उठे। दिल्ली, लाहौर, अमृतसर, कलकत्ता, ढाका, चटगांव, सौदपुर और रावलपिंडी सभी शहर आग की लपटों में घिर गए थे। लाल किला, जामा मस्जिद, स्वर्ण मंदिर, जलियांवाला बाग, हाल बाज़ार, उर्दू बाज़ार आदि जगह भी आग लगी थी। कई पुरुष और महिलाएं दंगों में मारे गए । इनमें गंगौली के बच्छन, सगीर फातमा, वैसेही रजनी कौर, नलिनी बनर्जी और अनारकली ऐसे दोनों धर्मों की स्त्रिया शामिल थी। कई महिलाओं को बुरी तरह अपमानित किया गया। इसके बारे में वर्णन करते हुए लेखक लिखता है, “अनारकली का नाम सगीर फातमा था, या रजनी कौर या नलिनी बॅनर्जी था- अनारकली की लाश खेत में थी, सडक पर थी, मस्जिद और मन्दिर में थी और उनके नंगे बदन पर नाखूनों और दाँतों के निशान थे। और लोगों ने खून से भीगे हुए गरारों, शलवारों और साडियों के टुकडों को यादगार के तौर पर हाफ्जे के सन्दूकों में सैंत-सैंतकर रख लिया था।” 10 इससे पता चलता है कि, यह भारत के इतिहास का बहुत ही अमानवीय दौर था।

            विभाजन के बाद, भारत से कई मुसलमान पाकिस्तान चले गए। गंगौली गाँव के तन्नू ने अपनी पत्नी और बेटी को और हकीम साहब के बेटे कुद्दन ने अपने पिता, पत्नी और बच्चों को भारत में छोड़ दिया। बच्छन, सगीर फातमा और बच्चों के साथ सफिरवा ट्रेन से पाकिस्तान के लिए रवाना हुआ। लेकिन, ट्रेन दिल्ली और अमृतसर के बीच एक जगह पर रुकी। ट्रेन पर हमला हुआ। बच्चों को मार दिया गया। सफिरवा बच्चों के शव लेकर पाकिस्तान चला गया। बच्छन और सगीर फातमा सीमा के इधर ही रह रहे। बाद में वे भी मारे गये। संक्षेप में, भारत-पाक विभाजन के बाद भडके दंगों में बड़े पैमाने पर हत्याएं हुईं। उसमे दोनों धर्मों के लोग मारे गए। महिलाओं की विटंबना की गई, उनका यौन शोषण किया गया।

            पाकिस्तान बनने के बाद गंगौली के अधिकांश लोगों के भाग्य में अकेलापन आया। क्योंकि किसी का पिता, किसी का बेटा, किसी का पति, ऐसे हर एक का कोई न कोई पाकिस्तान चला गया। कुछ जाते वक्त मारे गए। परिणामस्वरूप, भारत में रहने वाले उनके रिश्तेदारों का जीवन दयनीय हो गया। इस स्थिति का वर्णन करते हुए, लेखक लिखते हैं, “गरज कि आजादी के साथ कई तरह की तनहाइयाँ भी आयीं। बिस्तर की तनहाई से लेकर दिलों की तनहाई तक। उत्तर और दक्खिन-पट्टी में हर फर्द यकलख्त अकेला हो गया। बुढापा, जवानी और बचपन, सुहाग और बेवगी, दोस्ती, दुश्मनी और पट्टीदारी ! हर कैफियत अकेली थी। हर जज्बा तनहा था। दिन से रात और रात से दिन का ताल्लुक टुट गया था। दिन तो उसी तरह गुजर रहे थे जैसे गुजरा करते थे।….मगर रातें तो अजीरन हो जाती थीं। ख्वाब देखने को जी चाहता था पर काई किसके सहारे ख्वाब देखता !” 11

            मुसलमानों मे से कई इंजीनियर, डॉक्टर लडके पाकिस्तान मे चले गए। नतीजतन, सईदा जैसी उच्चशिक्षित लड़की के लिए अपनी शिक्षा या मूल्य का पती प्राप्त करना, फुस्सु मियां को अपनी बेटियों से शादी के लिए लडके मिलना मुश्किल हो गया। इसलिए वे अपनी बेटियों की शादी अब्बास और मिगदाद जैसे ‘दागी हड्डी’ (अशुद्ध वंश) के लडको से करने के लिए तैयार हो गये।

            शिव प्रसाद सिंह के उपन्यास ‘अलग-अलग वैतरणी’ में खलील मिया का बेटा बदरूल अपनी पत्नी को लेकर पाकिस्तान चला जाता है। वहां जाने के बाद, वह अपने पिता को कुछ पत्र भेजता है और उन्हे पाकिस्तान आने के लिए कहता है। वह करैता के लोगों को काफिर (यानी इस्लाम विरोधी, मूर्तिपूजक) कहता है। लेकिन खलील मियां पाकिस्तान नहीं जाते। वह अपने लडके को लिखे हुए एक पत्र में लिखते है कि, “तुम्हारे पाकिस्तान पर मे लानत भेजता हूँ। साले तू दोंगला है। काफिरों के बीच अपना दर्जनों पुश्त गल गया।” 12 इससे ये पता चलता है कि, वे भारत और भारत के हिंदुओं को अपना मानते हैं।

            उस समय भारत में कई स्थानों पर दंगे हो रहे थे। यह खबर खलील मिया के कानों तक आती रहेती थी। तब उनके मन में एक तरह का डर पैदा हो जाता। उनकी पत्नी भी डर के मारे उनको पाकिस्तान जाने के लिए कहती है। उसे ऐसी स्थिति में भारत में रहना खतरनाक लगता है। खलील मियां के सामने भी कुछ क्षणो के लिये ऐसा लगता है कि चले जाना चाहिये। लेकिन तभी उनके मन से एक आवाज़ आती है, “क्या कहकर जाओगे। हाँ, मैं क्या कह कर जाता? जहाँ कोई खतरा न था, जहाँ काली से काली रात में भी कभी किसी ने मेरे खानदान की ओर गलत ढंग से आँख नहीं उठाई, वहा से क्या कहकर जाऊँ। काफिर मुझे सता रहे हैं, ऐसा कहना सरासर झूठ होता। बेटे, मुझे लगा कि यह धरती के साथ दगा करना है। झूठी तोहमत लगाकर वतन को छोडना सबसे बडा कुफ है।” 13 और उसके बाद उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मैं  करैता को नहीं छोड़ूंगा। लेकिन बडे बेटे के इस तरह पाकिस्तान चले जाने से उन्हें बड़ा झटका लगता है। उनके “उसी कमीने ने तो मेरा सारा हौसला पस्त किया। उसने तो मु्झे कही का नहीं छोडा। बीच भँवर में डालकर चला गया।”14, यह प्रतिक्रिया इस पर प्रकाश डालती है।

            पाकिस्तान निर्मिती के इस घटना के कारण, ग्रामीण भारत में रहने वाले हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रेम और अंतरंगता के पूर्व बंधन गंभीर रूप से बाधित हो गए। उनमें एक-दूसरे के प्रति अविश्वास, आक्रोश और असंतोष की भावनाएँ विकसित हुईं। हम इसे उपरोक्त उपन्यासों में देखते हैं। ‘इंधन’ उपन्यास में, विभाजन के पंद्रह साल बाद भी दंगों में इसके परिणामों को हम देख सकते है।

            परिणामस्वरूप, भारत में हिंदू और मुसलमान, दोनों पर पाकिस्तान के गठन का दूरगामी प्रभाव पड़ा। ‘आधा गाँव’ उपन्यास में गंगौली गाँव और उस क्षेत्र के लोगों के और ‘अलग-अलग वैतरणी’ उपन्यास के खलील मियाँ के जीवन मे घटित घटनाए इसका एक प्रतिनिधिक उदाहरण है।

निष्कर्ष:

1) स्वतंत्र पाकिस्तान का निर्माण यह भारतीय इतिहास की एक बहुत ही बडी घटना है। इस घटना का ग्रामीण क्षेत्रों पर बहुत गहरा प्रभाव पडा। मराठी के ‘इंधन’ और हिंदी के ‘अलग-अलग वैतरणी’ उपन्यास में थोडा बहुत, तो ‘आधा गाँव’ उपन्यास में, इस घटना के लगभग सभी पहलुओं को चित्रित किया गया है।

2) यह सर्वविदित है कि, स्वतंत्र पाकिस्तान निर्माण के आंदोलन का नेतृत्व मोहम्मद अली जिन्ना ने किया था। इन उपन्यासों से भी इसकी पुष्टि होती है। उनके अलावा, राजा महमूदाबाद, चौधरी खलीकुज्जमाँ, गजनफर अली, नवाब इस्माइल, नवाब यूसुफ, सर सुलतान जैसे नेता भी इस आंदोलन में सबसे आगे थे, ये ‘आधा गाँव’ उपन्यास मे आये हुए संदर्भों से देखा जा सकता है।

3) इस घटना के कारण, हिंदू-मुस्लिम संबंध गंभीर रूप से बाधित हो गए। एक-दूसरे के त्योहारों में सहभागी होने वाले हिंदू-मुस्लिम लोग बाद में एक-दूसरे के खिलाफ आक्रामक होते हुए, एक-दुसरे पर हमला करते हुए, दूसरे धर्मों की महिलाओं की विटंबना करते हुए देखे जाते हैं। गंगौली में, हालांकि ऐसी कोई घटना नहीं हुई है। ‘इंधन’ ’उपन्यास के अनुसार, पाकिस्तान के निर्माण के समय मुसलमानों ने कोंकण में एक गाँव में दंगा किया था। उसके पंद्रह साल बाद भी इस गाँव में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक दंगा हुआ और स्त्रियो कि इज्जत लूट ली गई, ऐसा दिखाई देता है।

4) ‘आधा गाँव’ उपन्यास के चित्रण के माध्यम से पाक समर्थक नेताओं ने मुसलमानों के मन में भय और असुरक्षा की भावना पैदा कर दी थी। यह मुसलमानों के अस्तित्व का सवाल है और अगर सन्मान से जिना है तो एक स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र की आवश्यकता है, ऐसा वह बार-बार बता के उनके दिमाग मे बिठा रहे थे।

५) उपरोक्त चर्चा से यह दिखाई देता है कि गंगौली और करैता गाँव के खलील मिया, फुन्नन मिया, हकीम साहब, फ़ुसु मिया जैसे कई मुसलमान अपने गाँव, अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं, लेकिन तन्नू, सद्दन, सफिरवा पाकिस्तान मे चले गए हैं।

6) अधिकांश युवा मुसलमान अपनी पत्नि, बच्चों और माता-पिता को भारत में छोड़ कर पाकिस्तान चले गए, इसकी वजह से पीछे छूट गए लोगों के जीवन में शोक और अकेलेपन की लहर आ गई। बहुत से पढ़े-लिखे, डॉक्टर, इंजीनियर नौजवानों के पाकिस्तान में अकेले चले जाने से भारत की मुस्लिम लड़कियों को शादी के लिए लडका मिलना मुश्किल हो गया, ऐसा उपन्यासों मे वर्णित घटनाओ से दिखाई देता है।

संदर्भ ग्रंथ :

1) हमीद दलवाई, ‘इंधन’, मौज पब्लिशिंग हाउस, मुंबई, तीसरा संस्करण, 1995, पृ. 142.

2) राही मासूम रज़ा, ‘आधा गाँव’, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, ६ वाँ संस्करण, 2009, पृ. 51, 52.

3) वही, पृ.  58.

4) वही, पृ.  239 से 242.

5) वही, पृ.  248.

6) वही, पृ.  155.

7) वही, पृ.  251.

8) वही, पृ. 275, 276.

9) वही, पृ.  263, 264.

10) वही, पृ. 282.

11) वही, पृ. 291, 292.

12 शिव प्रसाद सिंह, ‘अलग-अलग वैतरणी’, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, सातवां संस्करण, २००, पृ.  192.

13) वही, पृ. 193.

14) वही, पृ. 191.


डॉ. राहूल भालेराव पाटील,

सहाय्यक प्राध्यापक, मराठी विभाग,

कला, वाणिज्य आणि विज्ञान महाविद्यालय,

जव्हार, जि. पालघर- 401 603.

भ्रमणध्वनी क्र. 9623092113.

ई मेल- patilrahulb14@gmail.com

यह शोधपत्र मेरे ‘१९६० ते १९७५ या कालखंडातील मराठी आणि हिंदी ग्रामीण कादंबर्‍यांमध्ये चित्रित पाकिस्तान निर्मितीची घटना व परिणाम’ इस मराठी शोधपत्र का हिन्दी अनुवाद है. वह पढने के लिए इस लिंक पे क्लिक करे. (इस में मैने उद्देश्य, अनुसंधान प्रणाली आदि मुद्दे नही दिये है) https://drrahulrajani.com/%e0%a5%a7%e0%a5%af%e0%a5%ad%e0%a5%ab-%e0%a4%a4%e0%a5%87-%e0%a5%a7%e0%a5%af%e0%a5%ad%e0%a5%ab-%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a4%96%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a5%80/

 

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