जब जब में पढना चाहू (व्यंग्य कविता) June 14, 2022July 12, 2022 Rahul Rajani हिंदी कविता जब जब में पढना चाहूमोबाइल की रिंगटोन बजे (२)जिंदबेरिये जब जब में कॉलेज जाऊ दोस्त सभी घुमने निकले… १ जब एग्झाम आये पासटूर्नामेंट में जाऊ खेलने… २ जब पैरो पे ही नहीं हो खडेतो शादी के लिए क्यू जी मचले… ३ इसलिये कहेता हूं पढोगे तो बन पाओगे कुछनहीं तो तेरे दिवाले निकले… ४ © राहुल Share this:TwitterFacebookTelegramWhatsAppEmailMoreLinkedIn Related चंद रोज की जिंदगी में…जिंदगी की कड़वाहट को धीरे-धीरे पी रहा हूँ चंद रोज की जिंदगी में, कुछ रंग भर रहा हूं... अक्सर घिरा रहता हूँ, भीड़ में मगर उस भीड़ में,अपनों को ढूंढ रहा हूँ चंद रोज की जिंदगी में, कुछ रंग भर रहा हूँ ...१... दोस्तों की कमी नहीं है,…February 29, 2020In "हिंदी कविता"आदतधोका खाने की जब आदत पड जाती है सच मानिये, जिंदगी बहोत आसान हो जाती है. (२९/११/२०१९)© copyrightDecember 1, 2020In "हिंदी कविता"ब्याजहमे तो 'ब्याज' ने लुटा 'मुद्दल' मे कहाँ दम था हम 'कर्जबाजारी' तब हुए जब हमारा 'उत्पन्न' कम था। © Copyright - डॉ. राहूलAugust 21, 2020In "Poem"